subhash chandra bose : स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता

Posted by

सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति जिनका जन्म (23 जनवरी 1897) में उड़ीशा के कंटक के एक बंगाली परिवार में हुवा था सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माँ का नाम प्रभावती’ था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के जाने मने और मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था।

सुभाष चंद्र बोस, की शिक्षा

नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात्, उनकी शिक्षा कोलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इंडियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अंग्रेज़ी शासन काल में, भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में प्रवेश पाना बहुत कठिन था, लेकिन उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया, जिससे उन्हें अपने शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मिला।

सुभाष चंद्र बोस : स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता 2023

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा..!’

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा..!’ यह नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण और प्रेरणास्पद संदेश का प्रतीक है। इस नारे में छिपा है एक अद्वितीय संकल्प और आज़ादी के लिए अपने जीवन की कुर्बानी की तैयारी।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जब भारत स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और नेताजी आज़ाद हिंद फोज के लिए सक्रिय थे, तब आए सभी युवक-युवतियों को अपने संबोधन में इस नारे के माध्यम से प्रेरित किया। इसका मतलब था कि वे तय कर चुके थे कि वे अपने जीवन का खून देकर भी स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

नेताजी ने इस मौके पर एक प्रतिज्ञा पत्र को बहुत महत्वपूर्ण बना दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि सभी युवक-युवतियों को अपने हस्ताक्षर न केवल साधारण स्याही से, बल्कि उनके हृदय की गहराइयों से देने होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वही आगे बढ़ें जिनकी रंगों में सच्चा भारतीय खून बहता है, जो अपने प्राणों का मोह नहीं होता, और जो आजादी के लिए अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार होते हैं।

नेताजी की इस बात ने सबको यह समझाया कि स्वतंत्रता के लिए हमें आत्मसमर्पण और संकल्प की आवश्यकता है, और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हर सम्भाव कोशिश करनी चाहिए। यह नारा हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण भाग का प्रतीक है और हमें हमेशा याद दिलाता है कि स्वतंत्रता का मूल्य अत्यधिक होता है और हमें इसे सबकुछ के लिए त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए।

सुभाष चंद्र बोस कितने भाई बहन थे

सुभाष चंद्र बोस के कुल मिलाकर 8 भाई और बहन थे।

  1. अनियल चंद्र बोस
  2. सुरेन्द्र चंद्र बोस
  3. सुधीर चंद्र बोस
  4. प्रह्लाद चंद्र बोस
  5. सरोजिनी नैदू (सुभाष चंद्र बोस की बहन)
  6. शरदा चंद्र बोस
  7. सुन्दरी चंद्र बोस
  8. जगदीप चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस का लोकप्रिय नाम क्या था?

सुभाष चंद्र बोस का लोकप्रिय नाम “नेताजी” उनके प्रशंसकों और समर्थकों ने उन्हें उनके दृढ़ और नेतृत्वीय योगदान के लिए पुकारने के रूप में उपयोग किया था। “नेताजी” का अर्थ होता है “नेता” या “लीडर”। सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता में से एक थे, और उनके योगदान ने उन्हें “नेताजी” के रूप में अपनी जगह बनाई।

सुभाष बोस कौन सी जाति है?

सुभाष चंद्र बोस की जाति के बारे में विवाद है और इस पर अलग-अलग मतभेद हैं। वे हिन्दू थे, लेकिन उनकी जाति के बारे में निश्चित जानकारी कम है। बोस जी के पिता का नाम जानकीनाथ बोस था और उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में हुआ था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनका योगदान भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय है। उनकी जाति पर ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है, क्योंकि उनके कार्यों और योगदान का महत्व उनकी जाति से अधिक था।

सुभाष बोस की कहानी :

सुभाष बोस की कहानी का आरंभ उनकी 24 साल की आयु में हुआ, जब वे 1921 के 16 जुलाई को महात्मा गांधी के साथ मुंबई पहुंचे। उस समय महात्मा गांधी 51 वर्ष के थे और वे असहयोग आंदोलन के प्रमुख नेता थे। इस आंदोलन ने भारत में स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का आरंभ किया था और महात्मा गांधी के नेतृत्व में विकसित हुआ था।

जब सुभाष बोस मुंबई में पहुंचे, तो उन्होंने महात्मा गांधी से एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार की योजना बनाई। इस साक्षात्कार के दौरान, उन्होंने कई सवाल गांधीजी के सामने रखे, जिनमें स्वतंत्रता संग्राम के लक्ष्य और साधनों की योजना शामिल थी। इस साक्षात्कार के दौरान, गांधीजी और बोस के बीच विचार-मत थे। गांधीजी के लिए अहिंसक साधनों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण था, जबकि बोस के विचार में साधनों का स्वीकार्य होना चाहिए, चाहे वो अहिंसक हों या नहीं।

इसके बाद, सुभाष बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव के रूप में काम करना शुरू किया और महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्भरण किया और कलकत्ता में स्वतंत्रता संग्राम के लिए साझा काम किया। उन्होंने स्वराज समाचार पत्रिका की स्थापना की और बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के प्रचार का कार्यभार संभाला।

1925 में, उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसके बाद, वे कलकत्ता के मेयर बने और अपने नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का संचालन किया। उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है, और वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।

सुभाष चंद्र बोस : स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता 2023

1933-1937: इलनेस, ऑस्ट्रिया, एमिली शेंकल

1930 के दशक के मध्य में, सुभाष बोस ने यूरोप की यात्रा की और वहां भारतीय छात्रों के साथ मिलकर बेनिटो मुसोलिनी जैसे यूरोपीय राजनेताओं से मुलाकात की। उन्होंने वहां जाकर पार्टी संगठन को भी देखा और साम्यवाद और फासीवाद के बारे में जानकारी प्राप्त की।

इस अवधि के दौरान, उन्होंने अपनी पुस्तक “द इंडियन स्ट्रगल” का पहला भाग लिखा, जिसमें उन्होंने 1920-1934 के दौरान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को विस्तार से वर्णन किया था। यह पुस्तक 1935 में लंदन में प्रकाशित की गई, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि उन्होंने इसमें अशांति के संकेत की ओर इशारा किया था।

यूरोप में, सुभाष बोस को वियना के ओटो फाल्टिस द्वारा आयोजित इंडियन सेंट्रल यूरोपियन सोसाइटी ने समर्थन प्रदान किया था।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका :

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चंद्र बोस की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उन्होंने अपने जीवन में स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। यहां हम उनके महत्वपूर्ण कार्यों और भूमिका को विस्तार से जानेंगे:

  1. जेल में आना: सुभाष चंद्र बोस को 1925 में राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए मांडले की जेल भेज दिया गया। वह वहाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. कांग्रेस के महासचिव बनना: 1927 में उन्हें जेल से रिहा किया गया और वे कांग्रेस के महासचिव बने। उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम को नेतृत्व दिया और युवाओं को संघर्ष में जुटाया।
  3. पूर्ण स्वराज की वकालत: सुभाष चंद्र बोस ने पूर्ण स्वराज की वकालत की और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक स्वराज्य मिलने तक लड़ने का संकल्प लिया।
  4. नेतृत्व में अंतर: उनके और महात्मा गांधी के बीच मतभेद थे। बोस का दृष्टिकोण समाजवाद और वामपंथी अधिनायकवाद की ओर था।
  5. आजाद हिंद सेना का गठन: 1941 में, उन्होंने आजाद हिंद सेना (आजाद हिंद फौज) की स्थापना की, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ने के लिए बनाई गई थी।
  6. अंडमान और निकोबार का मुक्ति प्रयास: उन्होंने जर्मनी के साथ जापान जाने के बाद अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर नियंत्रण करने का प्रयास किया, लेकिन यह प्रयास असफल रहा।

सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं और उनकी भूमिका ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर सुभाष दासबाबू के साथ काम करना चाहते थे। इंग्लैंड से उन्होंने दासबाबू को खत लिखकर उनके साथ काम करने की इच्छा प्रकट की। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम मुम्बई गये और महात्मा गांधी से मिले। मुम्बई में गांधी मणिभवन में निवास करते थे। वहाँ 20 जुलाई 1921 को गाँधी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई। गाँधी ने उन्हें कोलकाता जाकर दासबाबू के साथ काम करने की सलाह दी। इसके बाद सुभाष कोलकाता आकर दासबाबू से मिले।

उन दिनों गाँधी ने अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। दासबाबू इस आन्दोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाष इस आन्दोलन में सहभागी हो गए। गाँधी द्वारा 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया गया जिसके कारण 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अन्तर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की।

विधानसभा के अन्दर से अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिए कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता और दासबाबू कोलकाता के महापौर(Mayor) बन गए। उन्होंने सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाष ने अपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढाँचा और काम करने का तरीका ही बदल डाला। कोलकाता में सभी रास्तों के अंग्रेज़ी नाम बदलकर उन्हें भारतीय नाम दिये गए। स्वतंत्रता संग्राम में प्राण न्योछावर करने वालों के परिवारजनों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी।

बहुत जल्द ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए। जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अन्तर्गत युवकों की इण्डिपेण्डेंस लीग शुरू की। 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झण्डे दिखाये। कोलकाता में सुभाष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया।

साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा। मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाष उसके एक सदस्य थे। इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की। 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ।

सुभाष चंद्र बोस : स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता 2023

इस अधिवेशन में सुभाष ने खाकी गणवेश धारण करके मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी। गाँधी जी उन दिनों पूर्ण स्वराज्य की माँग से सहमत नहीं थे। इस अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेज़ सरकार से डोमिनियन स्टेटस माँगने की ठान ली थी। लेकिन सुभाषबाबू और जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराज की माँग से पीछे हटना मंजूर नहीं था। अन्त में यह तय किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जायेगा।

26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। जब सुभाष जेल में थे तब गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया।

भगत सिंह की फाँसी माफ कराने के लिये गाँधी जी ने सरकार से बात तो की परन्तु नरमी के साथ ऐसा बताया जाता है परंतु सत्य कुछ और ही है। सुभाष चाहते थे कि इस विषय पर गाँधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझौता तोड़ दें। लेकिन गांधीजी अपनी ओर से दिया गया वचन तोड़ने को राजी नहीं थे। अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर अड़ी रही और भगत सिंह व उनके साथियों को फाँसी दे दी गयी। भगत सिंह को न बचा पाने पर सुभाष गाँधी और कांग्रेस के तरीकों से बहुत नाराज हो गये।

छह महीने कारावास

1939 में सुभाषचंद्र बोस का अखिल भारतीय कांग्रेस कमीटी की बैठक में आगमन हुआ। सुभाष के सार्वजनिक जीवन में कुल 11 बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 को छह महीने के लिए कारावास में भेजा गया था।

1925 में, कोलकाता के पुलिस अधीक्षक चार्ल्स टेगार्ट को मारने का प्रयास करने के बाद, सुभाष को गलती से अर्नेस्ट डे नामक व्यापारी की मौत का आरोप लगा और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई। गोपीनाथ साहा नामक क्रान्तिकारी की मौत के बाद, सुभाष ने उनका अंतिम संस्कार किया, जिससे अंग्रेज़ सरकार को सुभाष के क्रान्तिकारी जज्बे का पता चला। इसके बाद, सुभाष को बिना किसी मुकदमे के म्यांमार के माण्डले कारागृह में बंद कर दिया गया।

5 नवम्बर 1925 को देशबंधु चित्तरंजन दास का निधन हो गया, और सुभाष ने इस खबर को माण्डले कारागृह में रेडियो पर सुना। उनकी तबियत माण्डले कारागृह में खराब हो गई, लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें इलाज के लिए यूरोप जाने की शर्त रखी। सुभाष ने इसे स्वीकार नहीं किया और फिर जेल में रहने का फैसला किया। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें इलाज के बाद भी भारत वापस नहीं लौटने की व्यवस्था की, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। आखिरकार, जेल अधिकारियों के खयाल में उनके जीवन की सुरक्षा को देखकर, सुभाष को रिहा कर दिया गया।

1930 में, सुभाष को कारावास में ही था जब उन्हें कोलकाता के महापौर चुना गया, और इसके बाद सरकार ने उन्हें रिहा करने का फैसला किया। 1932 में, उन्हें फिर से कारावास हुआ, इस बार अल्मोड़ा जेल में, जहाँ उनकी तबियत खराब हो गई। वे इलाज के लिए यूरोप जाने को राजी हुए, लेकिन फिर भी सरकार ने उन्हें यूरोप नहीं जाने दिया। उन्होंने बाद में इलाज के लिए यूरोप जाकर अपनी सेहत की देखभाल की।

सुभाष चंद्र बोस ऑस्ट्रिया में प्रेम विवाह :

1934 में, जब सुभाष चंद्र बोस अपने इलाज के लिए ऑस्ट्रिया गए, तो उन्हें एक जीवनी लिखने का विचार आया। इस काम के लिए वह एक टाइपिस्ट की तलाश में थे।ऑस्ट्रिया में, एक दोस्त के माध्यम से सुभाष चंद्र बोस को एमिली शेंकल से मिलवाया गया, जो धीरे-धीरे पहले उनकी दोस्त बनीं, और फिर उनकी प्रेमिका बन गईं। इसके बाद, दोनों ने इस रिश्ते को नाम दिया और 1937 में शादी कर ली।

29 नवंबर 1942 को विएना, ऑस्ट्रिया में एमिली शेंकल ने एक बेटी को जन्म दिया, और सुभाष ने उनकी बेटी का नाम अनीता बोस रखा। यद्यपि एमिली शेंकल कभी भी सुभाष चंद्र बोस की पत्नी के रूप में प्रस्तुत नहीं हुईं और उन्होंने अपने जीवन को अलग तरीके से बिताया, वे दोनों एक-दूसरे के साथ रहे और उनकी बेटी अनीता बोस का जन्म हुआ। एमिली शेंकल ने अपने जीविका के लिए एक तारघर में काम किया और अपनी बेटी को भी आस्ट्रिया में अलग रहने दिया। अनीता बोस ने मीडिया को बताया कि उनकी मां भी सुभाष चंद्र बोस की मौत की खबर को रेडियो समाचार से ही जानी थी, जैसे कि अन्य लोगों को पता चलता है।

कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों दिया

1938 में महात्मा गांधी ने सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुना था, लेकिन इसके बावजूद वह इस पद की जिम्मेदारी से संतुष्ट नहीं थे। इस दौरान, यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के आलोक में उन्होंने इंग्लैंड के कठिनाइयों का बारिक समर्थन किया था, ताकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और तेजी से आगे बढ़ा सके। इसके परंतु गांधीजी असहमत थे।

1939 में, कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चयन हुआ, और सुभाष चंद्र बोस चाहते थे कि यह व्यक्ति किसी दबाव के बिना चुना जाए, लेकिन जब कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं आया, तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, पट्टाभि सीतारमैय्या को कांग्रेस के नए अध्यक्ष के रूप में चुना गया।

यह समझा जा सकता है कि इस विवाद ने कांग्रेस पार्टी में आंतरिक विभाजन को बढ़ावा दिया और विभिन्न दलों के समर्थन में बदलाव आया। इसके परंतु गांधीजी के नेतृत्व में पार्टी ने आत्मसमर्पण दिखाया और एकत्र रहकर आगे बढ़ने का प्रयास किया।

सुभाष चंद्र बोस की मौत कब और कैसे हुई?

सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक, सुभाष चंद्र बोस की मोत 18 अगस्त 1945 को एक विमान हादसे में हुई। कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस जिस विमान से मंचुरिया जा रहे थे, वह रास्ते में लापता हो गया। उनके विमान के लापता होने से ही कई सवाल खड़े हो गए कि क्या विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था? क्या सुभाष चंद्र बोस की मौत एक हादसा थी या हत्या?

जापान सरकार का बयान

उसी साल 23 अगस्त को जापान की एक संस्था ने एक खबर जारी कि जिसमें कहा गया कि सुभाष चंद्र बोस का विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। किसी देश की संस्था से ऐसा बयान आने पर इस हादसे को सच माना जा सकता था लेकिन कुछ ही दिन बार जापान सरकार ने पुष्टि की कि ताइवान में उस दिन कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं। इस बयान से संशय और बढ़ गया कि जब कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं तो नेताजी गए कहां?

बोस परिवार की जासूसी क्यों?

सुभाष चंद्र बोस की मौत के पीछे एक रहस्य छिपा हुआ है, जिसमें उनके परिवार की जासूसी का आरोप भी है। इस लेख में, हम इस रहस्य की खोज करेंगे और उसके पीछे छिपे तथ्यों को समझने का प्रयास करेंगे।

आईबी की दो फाइलें

अप्रैल 2015 में आईबी की दो फाइलों की सार्वजनिक होने से यह विवाद उत्पन्न हुआ कि क्या वाकई में सुभाष चंद्र बोस के परिवार की जासूसी की गई थी। इन दो फाइलों के मुताबिक, आजाद भारत के प्रारंभिक दशकों में आईबी ने सुभाष चंद्र बोस के परिवार को जासूसी किया था।

नेहरू का शक

कई लेखकों का मानना है कि पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी सुभाष चंद्र बोस की मौत पर शक था। इसलिए वे बोस परिवार के पत्र की जांच करवाते थे ताकि अगर नेताजी परिवार से संपर्क करें तो पता चल सके। यह विवाद आज भी जारी है कि क्या नेहरू ने बोस के परिवार की जासूसी करवाई थी और क्या उनकी मौत से जुड़े सवाल हैं।

सुभाष चंद्र की मौत हादसा या हत्या?

बाद में सुभाष चंद्र की मौत से जुड़ी 37 फाइलें सरकार ने सार्वजनिक कर दी लेकिन इन फाइलों से कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले कि सुभाष चंद्र बोस की मौत हत्या थी या हादसे में हुई थी। नेताजी के समर्थकों का मानना है कि वे देश की आजादी के समय जीवित थे, लेकिन इस बाल का भी कोई सबूत नहीं है। आज भी सवाल बरकरार है कि क्या 1945 में विमान हादसे में सुभाष चंद्र बोस की मौत हुई थी अगर होती है तो यह हत्यार कौन था, और अगर नहीं तो नेताजी कहां गए और क्यों छुपकर रहे?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *