Mahatma Gandhi : ‘मोहनदास करमचन्द गांधी’ के नाम से भी जाना जाता है, और वह भारत के राष्ट्रपति भी थे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। उन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी संदर्भित किया जाता है, जिनका मतलब है ‘महान आत्मा’। गांधीजी ने अपने जीवन में अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित सत्याग्रह के माध्यम से अत्याचार के खिलाफ सफलता प्राप्त की और भारत को स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में प्रेरित किया।
जीवन की प्रारंभिक जयंती
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था, और इस दिन को हम गांधी जयंती के रूप में मनाते हैं। यह दिन भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण दिनों में से एक है, क्योंकि गांधीजी ने अपने जीवन में अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दिशा दिलाई।
Mahatma Gandhi जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर शहर में हुआ था, और उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। वे एक साधारण परिवार से थे, लेकिन उनकी सोच और दृढ़ इच्छा से भरपूर थी।
गांधी जी की प्रारंभिक जीवन की शिक्षा और अनुभव ने उन्हें एक नए दिशा में ले जाया। वे अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में एक साधु की तरह जीने लगे और आत्मा के साथ एकान्त में विचारधारा को ध्यान में रखने लगे। इससे उनके मन में अहिंसा और सत्य के मार्ग की प्राधान्य मिली, जो उन्होंने अपने जीवन के बाद में सत्याग्रह के माध्यम से प्रमुख किया।
गांधी जी की प्रारंभिक जीवन की इस अद्वितीय यात्रा ने उन्हें उनके बाद के जीवन के लिए तैयार किया, और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महान नेता बनने का मार्ग प्रशस्त किया।
महात्मा गांधी कम आयु में विवाह
- महात्मा गांधी के कम आयु में विवाह का वर्णन उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। उनका जन्म में विवाह कस्तूरबा माखनजी से हुआ, जब वे साढ़े तीन साल के थे। इस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में, छोटी आयु में विवाह की यह प्रथा थी, और गांधीजी के माता-पिता ने भी उनकी शादी को ऐसे ही आयोजित किया। इस विवाह के बाद, कस्तूरबा को छोटा नाम दिया गया और लोग उन्हें प्यार से “बा” कहते थे।
- महात्मा गांधी का यह विवाह उनके जीवन के उस समय के सांस्कृतिक संदर्भ को प्रकट करता है और समाज में विवाह की इस प्रथा के खिलाफ उनकी आंदोलन की शुरुआत की ओर पहुँचाता है। गांधीजी के विचारों में इस प्रकार के बच्चों के विवाह की प्रथा को समाज में सुधार की आवश्यकता है, और उन्होंने इस पर काम किया।
- उनके विवाह के बाद, उनके पास चार पुत्र हुए, और उन्होंने अपने शिक्षा का माध्यम गुजराती भाषा में चुना। वे गुजरात के विभिन्न स्थानों में रहते थे और उनके परिवार ने उनके शिक्षा को प्राथमिकता दी। इसके बाद, गांधीजी ने अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता बने।
2 अक्टूबर Mahatma Gandhi
2 अक्टूबर को पूरी दुनिया में “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून, 2007 को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें दुनिया के लोगों से यह आग्रह किया गया कि वे शांति और अहिंसा के मूल्यों का समर्थन करें और महात्मा गांधी के जन्मदिवस को “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” के रूप में मनाएं।
इस दिन का मुख्य उद्देश्य है, पूरी दुनिया में शांति को स्थापित करना और अहिंसा का मार्ग अपनाना। इसके अलावा, इस दिन को शांति, सहिष्णुता, समझ, और अहिंसा की संस्कृति को प्रमोट करने का भी माध्यम माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के अनुसार, यह दिन “शिक्षा और जन जागरूकता सहित अहिंसा के संदेश को प्रसारित करने” का एक अच्छा मौका है।

Mahatma Gandhi शिक्षा
Mahatma Gandhi की प्राथमिक शिक्षा गुजरात के पोरबंदर शहर में पूरी हुई। एक औसत छात्र थे महात्मा गांधी। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से की लॉ की पढाई उन्होंने भारत से लेकर इंग्लैंड तक पढ़ाई की. राष्ट्रपिता के सिद्धांतों और औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के लिए योगदान के बारे में हम सभी जानते हैं. उनके योगदान को पढ़ते हैं, तो अहिंसा, समानता और स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्षों की कहानियां सुनते हैं. पर क्या हम जानते हैं वह एक छात्र के रूप में कैसे थे. गांधी जी की जयंती के मौके पर आपको उनकी ज़िंदगी के इसी पहलू से रूबरू करा रहा है.
गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पोरबंदर में ही की थी. वह पढ़ाई में बहुत तेज न होकर औसत थे. उन्होंने मिट्टी में अक्षर लिखना सीखा था. उनकी खेल में कोई रुचि नहीं थी. हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद, मोहनदास करमचंद गांधी 9 साल की उम्र में राजकोट चले गए. उनके पिता करमचंद गांधी राजकोट रियासत में दीवान थे.
11 साल की उम्र में मोहनदास का दाखिला राजकोट के अल्फ्रेड हाईस्कूल में कराया गया. गांधी का मन न तो खेल में लगता था और न ही खेल के मैदान में. इसलिए उन्हें एक साल रिपीट भी करना पड़ा था. फिर 13 साल की उम्र में कस्तूरबा बाई से शादी हो गई. पिता बीमार पड़ गए. इन सब वजहों से पढ़ाई को लेकर उनका संघर्ष काफी बढ़ गया था. अंग्रेजी में अच्छे थे मोहनदास. अंकगणित में ठीक-ठाक और भूगोल में कमजोर थे. आचरण अच्छा था. हैंडराइटिंग खराब थी. अल्फ्रेड हाईस्कूल का नाम बदलकर बाद में मोहनदास करमचंद गांधी हाईस्कूल कर दिया गया.
मई 2017 में यह स्कूल संग्रहालय में बदल दिए जाने के चलते बंद कर दिया गया. हाईस्कूल के बाद उन्होंने भावनगर के सामलदास आर्ट्स कॉलेज में दाखिला लिया. यह उस समय एक मात्र कॉलेज था जो डिग्री देता था. वह पढ़ाई बीच में ही छोड़कर पोरबंदर वापस लौट गए. कुछ समय बाद उन्होंने दोबारा कॉलेज में एडमिशन लिया.
लेकिन इस बार अलग विषय में. मोहनदास करमचंद गांधी 1888 में लॉ की पढ़ाई करने ब्रिटेन गए. यहां उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में एडमिशन लिया. तीन साल बाद उन्हें 1891 में लॉ की डिग्री मिली. 1893 में गुजराती व्यापारी शेख अब्दुल्ला के वकील के तौर पर काम करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए. उन्होंने ब्रिटिश उपनिवेश के अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई शुरू की.
Mahatma Gandhi का पहला आंदोलन क्या था?
Mahatma Gandhi का सबसे पहला आंदोलन सत्याग्रह था

सत्याग्रह आंदोलन :
सत्याग्रह के साथ, Mahatma Gandhi ने एक नये युग की शुरुआत की, जिसमें दुनिया के राजनीतिक परिदृश्य पर नागरिक प्रतिरोध उठा। यह शब्द अहिंसक प्रतिरोध को उपयुक्त रूप से परिभाषित करने के लिए गढ़ा गया था, जो दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश उपनिवेशवादी शासन के खिलाफ बढ़ रहे थे। इस शब्द का विभिन्न तरीकों से व्याख्यान किया गया है, लेकिन इसका असली मतलब है सत्य में अटूट विश्वास, विपरीत परिस्थितियों में भी अटल।
गांधीजी के लिए सत्याग्रह अपने राजनीतिक अधिकार अर्जित करने का एकमात्र वैध तरीका था, क्योंकि यह सत्य के आदर्शों पर आधारित था। भारतीय इतिहास के गांधीवादी युग में, सत्याग्रह उन सभी राष्ट्रीय आंदोलनों के मुख्य घटक थे और इसकी परंपरा गांधी के बाद भी बहुत लंबे समय तक जारी रही, क्योंकि मार्टिन लूथर किंग ने नस्लवाद के खिलाफ अपने आंदोलन में इसका उपयोग किया। सत्याग्रह ने संवाद के बिना सशस्त्र हिंसा के तर्क को बदल दिया है, और दुनिया भर में इसे एक महत्वपूर्ण प्रतिरोध उपकरण के रूप में स्वीकार किया गया है।
- सत्याग्रह की उत्पत्ति: अवधि और प्रभाव
गांधीजी को ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ उस क्रांति को प्रकट करने के लिए एक ऐसे शब्द की आवश्यकता थी जो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में आयोजित की थी। ‘निष्क्रिय प्रतिरोध,’ उनकी पहली अव्यवस्थित पसंद, न केवल एक विदेशी शब्द था जिसके बारे में गांधी को सख्त आपत्ति थी, बल्कि इस शब्द के अर्थ सत्य और नैतिक साहस के उस पहलू को उजागर करने के लिए भी अपर्याप्त थे, जिसे गांधी ने अहिंसक राजनीतिक प्रतिरोध से जोड़ा था। इसके अलावा, इसने गहरे वैचारिक मूल्यों से अलग होकर, राजनीतिक लक्ष्यों को सबसे आगे रखा।
गांधी को एक ऐसे भारतीय नाम की ज़रूरत थी जो क्रांति के इन सभी पहलुओं को अपने अंदर समाहित कर सके। स्थानीय समाचार पत्रिका ‘इंडियन ओपिनियन’ में एक प्रतियोगिता आयोजित हुई और ‘सदाग्रह’ को सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि के रूप में चुना गया। गांधी ने यह शब्द लिया, लेकिन इसमें ‘सच्चाई’ के पहलू को उजागर करते हुए इसे ‘सत्याग्रह’ में बदल दिया।
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सत्याग्रह Mahatma Gandhi
गांधीजी ने सत्याग्रह के मार्ग पर चलते हुए दक्षिण अफ्रीका में जो क्रांतियाँ की, उनमें सफलता प्राप्त की। उन्हें यह सहज विश्वास था कि यह भारत में भी सफल होगा। वास्तव में, गांधी की सहज धारणा थी कि शक्तिशाली ब्रिटिशों से लड़ने का यही एकमात्र प्रभावी तरीका होगा, क्योंकि दो शताब्दियों के औपनिवेशिक शासन ने भारत को आर्थिक और नैतिक रूप से इस हद तक कमजोर कर दिया है कि प्रतिरोध का कोई भी अन्य रूप विफल होना तय है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में उनके शुरुआती वर्षों में गांधीजी के सत्याग्रह के तरीकों को बहुत कम लोग स्वीकार करते थे।
हालाँकि, गोपाल कृष्ण गोखले के कुशल मार्गदर्शन में, गांधी की पद्धति को धीरे-धीरे स्वीकृति मिली। गांधी जी ने बिहार के चंपारण में नील बागान मालिकों की क्रांति में सत्याग्रह के तरीकों को सफलतापूर्वक अपनाकर राजनीतिक प्रसिद्धि हासिल की। इसी विधि को खेड़ा में समान परिणामों के साथ दोहराया गया ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बढ़ाए गए करों के विरुद्ध गुजरात। कुख्यात रोलेट एक्ट के बाद, सत्याग्रह 1920 के असहयोग आंदोलन की नींव बन गई। चौरी-चौरा घटना के साथ असहयोग आंदोलन का अंत हो गया।
हालांकि, यह सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान था कि गांधी जी ने बड़े पैमाने पर सत्याग्रह को फिर से शुरू किया। सरकारी नियमों का उनका शांतिपूर्ण खंडन 12 मार्च 1930 को प्रसिद्ध दांडी मार्च और नमक बनाने के साथ शुरू हुआ, जिसमें ब्रिटिश नमक कानून की अवहेलना की गई थी, जिसमें सरकारी अनुमति के बिना नमक बनाने पर रोक थी। हालांकि शुरुआती वर्षों में अधिकांश पश्चिमी और विशेष रूप से ब्रिटिश प्रेस द्वारा इसका उपहास किया गया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार को जल्द ही सत्याग्रह की असली ताकत का एहसास हुआ,
क्योंकि भारतीयों के बड़े पैमाने पर बहिष्कार के बाद सभी सरकारी प्रयास और उद्यम सुस्ती में थे। गांधीजी का सत्याग्रह सफलता के शिखर पर पहुंच गया, और भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन चरम पर पहुंच गया, जिससे सरकार को गांधी-इरविन समझौते की दिशा में प्रक्रिया शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके बाद दूसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ।
उस समय तक सत्याग्रह ने व्यापक लोकप्रियता हासिल कर ली थी और पूरे देश में प्रतिबद्ध सत्याग्रही मौजूद थे। भारत छोड़ो आंदोलन ने सत्याग्रह के आदर्शों को पुनः प्राप्त किया, जिससे अंततः भारतीय स्वतंत्रता हासिल करने में काफी मदद मिली।
हरिजन आंदोलन और निश्चय आंदोलन
हरिजन आंदोलन: हरिजन आंदोलन Mahatma Gandhi द्वारा चलाया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिसका उद्देश्य दलितों (हरिजनों) के समाज में समाजिक समानता और उनके अधिकारों की सुरक्षा और सुधार करना था। गांधीजी ने दलितों को “हरिजन” कहा, जिसका अर्थ भगवान की संतान होता है। उन्होंने इस आंदोलन के माध्यम से हरिजनों के लिए मंदिरों, स्कूलों और अन्य सामाजिक स्थलों में भी प्रवेश की यात्रा को बढ़ावा दिया और उनके लिए समाज में समानता की मांग की।
निश्चय दिवस: निश्चय दिवस 1 जनवरी को मनाया जाता है और यह Mahatma Gandhi द्वारा आयोजित किया गया था। इस दिन को निश्चय दिवस के रूप में मनाने का उद्देश्य था हरिजनों के लिए मंदिरों और अन्य सामाजिक स्थलों में प्रवेश की समाज में स्वीकृति को दिखाना। गांधीजी ने इस दिन को एक उपवास के रूप में मनाया था, जिसका उद्देश्य उनके आत्मशुद्धि और समाज में समाजिक समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट करना था।
इन आंदोलनों और आयोजनों के माध्यम से महात्मा गांधी ने दलितों के समाज में समाजिक बदलाव के लिए संघर्ष किया और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रयास किए। इन आंदोलनों ने भारतीय समाज में समाजिक जातिवाद के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया और समाज में समाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई में मदद की।
असहयोग आन्दोलन : Mahatma Gandhi
असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी के द्वारा प्रारंभ किया गया पहला जन आंदोलन था। इस आंदोलन को बड़े संख्या में लोगों का समर्थन प्राप्त था और इसके पीछे शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग, ग्रामीण क्षेत्र के किसान और आदिवासी, और श्रमिकों का भी योगदान था। इस प्राथमिक जन आंदोलन का आदान-प्रदान 1914-1918 के पहले विश्व युद्ध के दौरान हुआ, जब अंग्रेज सरकार ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया और बिना किसी जाँच के कारावास की अनुमति दे दी। इस पर जवाब में, महात्मा गांधी ने देशभर में इस अधिनियम (रॉलेट एक्ट) के खिलाफ एक अभियान चलाया।
जालियाँवाला बाग हत्याकांड “Mahatma Gandhi
उत्तरी और पश्चिमी भारत के कस्बों में आंदोलन के समर्थन में दुकानों और स्कूलों के बंद होने के कारण लोगों का जीवन ठहर गया। पंजाब में, खासकर कठिन विरोध हुआ, जहाँ के बहुत से लोग युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में सेवा की थी और अब वे इनाम की अपेक्षा कर रहे थे। हालांकि उन्हें रॉलेट एक्ट की बजाय मिला। पंजाब जाते समय महात्मा गांधी को कैद किया गया और स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
प्रांत की स्थिति धीरे-धीरे तनावपूर्ण हुई और 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में यह खूनखराबी के चरम पर पहुंच गई, जब एक अंग्रेज ब्रिगेडियर (रेजिनाल्ड डायर) ने एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का आदेश दिया। इस हत्याकांड को जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है, जिसमें लगभग 1,200 लोगों की मौके पर मौके पर हत्या की गई और 1600-1700 लोगों को घायल कर दिया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आन्दोलन : Mahatma Gandhi
भारत छोड़ो आंदोलन: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण क्षण
द्वितीय विश्व युद्ध के बीच, जब दुनिया “करो या मरो” की भावना से गूंज उठी, तो भारत में भी देशभक्ति का जोश उमड़ पड़ा। इस अवधि ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक – भारत छोड़ो आंदोलन को जन्म दिया। 8 अगस्त, 1942 को किसी और के द्वारा नहीं बल्कि स्वयं महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए इस सामूहिक सविनय अवज्ञा आंदोलन का उद्देश्य भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को समाप्त करना था।
वह नारा जो गूँजा: ‘भारत छोड़ो’
“भारत छोड़ो” का नारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कम प्रसिद्ध नायक यूसुफ मेहरअली द्वारा दिया गया था। मेहरअली, एक समाजवादी और ट्रेड यूनियनवादी, जिन्होंने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था, ने “साइमन वापस जाओ” का नारा भी लोकप्रिय बनाया।
आंदोलन के पीछे कारण
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत गोवालिया टैंक मैदान में Mahatma Gandhi के प्रसिद्ध “करो या मरो” भाषण से हुई थी, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के रूप में जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण निर्णय के लिए कई कारक जिम्मेदार थे:
- धुरी राष्ट्रों से ख़तरा
जैसे ही द्वितीय विश्व युद्ध भड़का, भारत की उत्तरपूर्वी सीमाओं को धुरी शक्तियों में से एक, जापान के कब्जे का सामना करना पड़ा। दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रों से ब्रिटिश साम्राज्य की वापसी ने भारतीय आबादी को एक्सिस आक्रामकता के खिलाफ ब्रिटिश सुरक्षा के बारे में संदेह में डाल दिया। - आर्थिक कठिनाइयाँ
युद्धकाल में आर्थिक कठिनाइयाँ आईं, जिनमें आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें भी शामिल थीं, जिससे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रोश और बढ़ गया। - क्रिप्स मिशन की विफलता
भारत की समस्याओं का संवैधानिक समाधान प्रदान करने में क्रिप्स मिशन की विफलता के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को बड़े पैमाने पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन का आह्वान करना पड़ा। यह मिशन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय सहयोग प्राप्त करने का एक प्रयास था।
भारत छोड़ो आंदोलन की समयरेखा Mahatma Gandhi
जुलाई 1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के वर्धा सम्मेलन में इसकी मंजूरी के बाद, भारत छोड़ो आंदोलन आधिकारिक तौर पर 8 अगस्त, 1942 को शुरू हुआ। आंदोलन के दौरान प्रमुख घटनाएं शामिल थीं:
यूसुफ मेहरअली द्वारा ‘भारत छोड़ो’ और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे गढ़े गए।
मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में महात्मा गांधी का ऐतिहासिक भाषण।
महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम आज़ाद, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे प्रमुख नेताओं की गिरफ़्तारी।
राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और एसएम जोशी जैसे युवा नेताओं का उदय हुआ, जो पूरे भारत में आंदोलन को प्रेरित करते रहे।
- साइमन कमीशन और उसके परिणाम
साइमन कमीशन, या भारतीय वैधानिक आयोग, संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने के लिए 1928 में भारत भेजा गया एक समूह था। इसके आगमन पर “गो साइमन गो” और “गो बैक साइमन” जैसे नारों के साथ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। भारतीय विरोध इस तथ्य से उत्पन्न हुआ कि आयोग में कोई भारतीय प्रतिनिधित्व नहीं था और महत्वपूर्ण शक्तियाँ ब्रिटिश हाथों में रहीं।
- ब्रिटिश प्रतिक्रिया
भारत छोड़ो आंदोलन के जवाब में, ब्रिटिश सरकार ने प्रमुख कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिससे आंदोलन की जिम्मेदारी जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे युवा नेताओं के हाथों में रह गई। हिंसा हुई, लेकिन इसकी प्रकृति सांप्रदायिक नहीं थी। कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, नेताओं को जेल में डाल दिया गया और गांधीजी को स्वास्थ्य समस्याओं के कारण 1944 में रिहा कर दिया गया।
- विविध प्रतिक्रियाएँ
सभी राजनीतिक दलों ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा के रुख अलग-अलग थे। सुभाष चंद्र बोस विदेश से आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद सरकार को संगठित कर रहे थे। पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को लेकर मतभेद के कारण सी. राजगोपालाचारी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
- आंदोलन की विरासत
भारत छोड़ो आंदोलन अंततः विफल हो गया क्योंकि इसमें एक विशिष्ट कार्यक्रम का अभाव था और प्रमुख कांग्रेस नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। फिर भी, यह स्वतंत्रता की दिशा में भारत की यात्रा में एक महत्वपूर्ण अध्याय बना हुआ है, जो इसके लोगों के दृढ़ संकल्प और लचीलेपन को प्रदर्शित करता है।
भारत छोड़ो आंदोलन भारत की आज़ादी की लड़ाई में एक उल्लेखनीय घटना थी। यह राजनीतिक, आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय कारकों के जटिल जाल से उत्पन्न हुआ और देश के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी। अपनी अंतिम विफलता के बावजूद, यह आंदोलन भारत की स्व-शासन की खोज की अमर भावना के प्रमाण के रूप में खड़ा है।
“Mahatma Gandhi जी का चरखा

धर्म, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के प्रतीक – चरखा
Mahatma Gandhi जी ने चरखे की तलाश की थी, और इस तलाश में एक गंगा बहन ने उन्हें चरखा बड़ौदा के किसी गांव से मंगवाया था। इससे पहले गाँधी जी ने चरखा कभी देखा भी नहीं था, सिर्फ सुना था उसके बारे में। बाद में उस चरखे में उन्होंने काफ़ी सुधार भी किए।
दरअसल, गाँधी जी के चरखे और खादी के पीछे सेवा का भाव था। उनका चरखा एक वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था का प्रतीक भी था, जो महिलाओं की आर्थिक स्थिति के लिए भी, उनकी आजादी के लिए भी महत्वपूर्ण था। यह चरखा आर्थिक स्वतंत्रता के लिए भी महत्वपूर्ण था, और उस किसान के लिए भी, जो 6 महीने ख़ाली रहता था।
इसलिए उस समय चरखा इतना प्रभावी हुआ कि अच्छे-अच्छे घरों की महिलाएं चरखा चलाने लगीं, सूत कातने लगीं; लेकिन धीरे-धीरे यह सब समाप्त हो गया। कांग्रेस की सरकार ने उनका इस्तेमाल किया या नहीं, इसकी एक अलग कहानी है।
चरखे का सामाजिक महत्व
Mahatma Gandhi ने लिखा है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिये खादी पहनना सर्वोच्च अनिवार्यता है। गाँधी जी का प्रत्येक भारतीय से आग्रह था कि वह रोज कताई करें और घर में कताई कर बुने वस्त्र ही पहनें। उनका यह आग्रह अनुचित या अत्युत्साही राष्टभक्ति से नहीं उपजा था बल्कि भारत की नैतिक और आर्थिक स्थितियों के यथार्थवादी मूल्यांकन पर आधारित था।
आज और कल
गाँधी जी का आग्रह था कि चरखे अथवा स्थानीय महत्व के अन्य उपकरणों पर आधारित और आधुनिक तकनीकी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कुटीर उद्योग विकसित किये जायें।
आज के संदर्भ में, चरखे को आधुनिकीकरण के माध्यम से बड़ा आर्थिक सहायक बनाया जा सकता है। इलेक्टॉनिक सेक्टर, खेती के औजारों का निर्माण, कार्बनिक उर्वरक, बायोगैस और कचरे से बिजली उत्पादन जैसी गतिविधियों को कुटीर उद्योगों से जोड़ा जा सकता है।
गाँधी जी ने अनेक नाम गिनाये थे, जिन्हें ग्राम स्तर पर सहकारी आधार पर चलाया जा सकता है। चरखे और घर में कताई कर बुने वस्त्र पहनने के प्रति गाँधी जी के आग्रह के पीछे निर्धनतम व्यक्ति के बारे में उनकी चिंता झलकती है।
उन्हें करोड़ों लोगों की भूख की चिंता थी। उनका कहना था – “हमें उन करोड़ों लोगों के बारे में सोचना चाहिए, जो पशुओं से भी बदतर जीवन जीने के लिये अभिशप्त हैं, जो अकाल की आशंका से ग्रस्त रहते हैं और जो लोग भुखमरी की अवस्था में हैं।”
चरखे की नीलामी : एक ऐतिहासिक पल
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यरवडा जेल में जिस चरखे का इस्तेमाल महात्मा गाँधी ने किया था, वह नीलामी के दौरान ब्रिटेन में एक लाख दस हजार पौंड का बिका। चरखे की न्यूनतम बोली 60,000 लगाई गई थी।
पुणे की यरवडा जेल में गाँधी जी ने इसे इस्तेमाल किया था। बाद में यह चरखा उन्होंने एक अमेरिकी मिशनरी रेव्ड फ्लॉयड ए पफर को भेंट कर दिया। पफर भारत में शैक्षणिक और औद्योगिक सहकारी संघ बनाने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने बाँस का एक हल बनाया था, जिसे गाँधी जी ने बाद में इस्तेमाल भी किया।
महात्मा गांधी की मृत्यु “Mahatma Gandhi
गांधी को 30 जनवरी 1948 को हिंदू कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे ने 3 गोली मार दी थी, जो गांधी द्वारा मुसलमानों के तुष्टीकरण से नाराज थे। उन्हें बिरला हाउस ले जाया गया जहां उन्होंने रात 9:15 बजे मरने से पहले “हे राम” शब्द फुसफुसाए।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि “गांधी जी भारत के महान सपूतों में से एक थे।” उन्होंने आगे कहा: “भारतीय उन्हें 1 अरब लोगों के भाग्य को ज्ञान, साहस और करुणा के साथ आकार देने में उनके महान योगदान के लिए हमेशा याद रखेंगे। वह 20 वीं शताब्दी के एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व और राष्ट्रीय परिदृश्य पर महान व्यक्तित्वों में से एक थे। लोक कल्याण के लिए उनके विचार , विशेष रूप से शांति और अहिंसा; उनके आदर्शों, उनकी आस्था, उनकी छवि, उनके दर्शन और, सबसे बढ़कर साथी मनुष्यों के लिए उनका सार्वभौमिक प्रेम दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करता रहेगा।
लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थित है । गांधी जी को भारतीय लोगों द्वारा “अपने देश के पिता” के रूप में वर्णित किया गया है, और उन्हें भारतीय इतिहास के अन्य महान लोगों के साथ उच्च सम्मान दिया है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
महात्मा गांधी की पूरी कहानी क्या है?
Mahatma Gandhi का जन्म कब हुआ था?
- Mahatma Gandhi का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था।
2. Mahatma Gandhi के प्रमुख सत्याग्रह कौन-कौन से थे?
- महात्मा गांधी के प्रमुख सत्याग्रह में चम्पारण, खिलाफत आंदोलन, और दंडी मार्च शामिल हैं।
3. क्या Mahatma Gandhi का संदेश आज भी महत्वपूर्ण है?
- हाँ, महात्मा गांधी का संदेश आज भी आपसी समझ, शांति, और सहमति की ओर हमें बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण है।
4. कैसे Mahatma Gandhi को “बापू” कहा जाता है?
- “बापू” Mahatma Gandhi को उनके आदर्शपूर्ण और पितृभावन व्यक्तित्व के लिए कहा जाता है।
5. Mahatma Gandhiकी हत्या कब हुई और कैसे?
- Mahatma Gandhi की हत्या 30 जनवरी 1948 को नथूराम गोडसे द्वारा की गई थी। वे बीरेंद्र नाथ गोडसे द्वारा गोली मारकर निधन हुए थे।
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