LaLa Lajpat Rai : एक महान स्वतंत्रता सेनानी परिचय, शिक्षा ,उद्देश्य, मृत्यु, साइमन कमीशन का विरोध 2023

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LaLa Lajpat Rai : एक क्रांतिकारी जिसने देश की आज़ादी के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी। जब साइमन कमीशन का विरोध करते समय उनपर ब्रिटिश पुलिस की लाठियाँ चली तो उन्होंने कहा ” मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी’ और वाकई इस चोट के साथ भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का कफ़न तैयार होना शुरू हो गया। हम बात कर रहे है LaLa Lajpat Rai की

जीवन परिचय

लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को एक अग्रवाल जैन परिवार में हुआ था, जो फरीदकोट के ढुडीके में मुंशी राधा कृष्ण , एक उर्दू और फारसी सरकारी स्कूल के शिक्षक और गुलाब देवी अग्रवाल के छह बच्चों में सबसे बड़े बेटे थे लाला शब्द का अर्थ पंजाब केशरी और पंजाब दा शेर के नाम से भी जाना जाता था

LaLa Lajpat Rai : एक महान स्वतंत्रता सेनानी परिचय, शिक्षा ,उद्देश्य, मृत्यु, साइमन कमीशन का विरोध 2023

लाजपत राय की प्रारंभिक शिक्षा

LaLa Lajpat Rai की प्रारंभिक शिक्षा सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रेवारी, पंजाब में हुई , जहाँ उनके पिता एक उर्दू शिक्षक के रूप में थे। 1880 में, उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां वे लाला हंस राज और पंडित गुरु दत्त जैसे देशभक्तों और भावी स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये। लाहौर में अध्ययन के दौरान वे स्वामी दयानंद सरस्वती के हिंदू सुधारवादी आंदोलन से प्रभावित हुए ,

LaLa Lajpat Rai साइमन कमीशन का विरोध क्यों कर रहे थे?

LaLa Lajpat Rai और अन्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता साइमन कमीशन के विरोध में आए थे क्योंकि साइमन कमीशन ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय लोगों की आवाज को सुनना, लेकिन यह कमीशन केवल ब्रिटिश लोगों के हाथ में था और भारतीय लोगों को कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं था।

लाला लाजपत राय और अन्य स्वतंत्रता संग्रामी नेता मानते थे कि साइमन कमीशन का उद्देश्य सिर्फ भारतीय लोगों की आवाज को दबाना और ब्रिटिश साम्राज्य को सुरक्षित रखना था। वे इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के खिलाफ एक प्रयास मानते थे और इसके विरुद्ध विरोध करने में सक्रिय रूप से भाग लिए।

साइमन कमीशन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले नेताओं का यह मानना था कि भारतीय लोगों को अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए खुद का स्वार्थ लेना चाहिए और वे ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खड़े होने के लिए तैयार थे। इसके परिणामस्वरूप, साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध और आंदोलन हुआ, जिसमें लाला लाजपत राय भी अहम भूमिका निभाएं।

साइमन कमीशन का उद्देश्य क्या था?

साइमन कमीशन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारतीय साम्राज्य की संरक्षा और प्रशासन के सुधार के लिए राजा जॉर्ज पंचम के आदेश पर बनाया गया था। इस कमीशन का पूरा नाम “साइमन आयोग” था, और यह 1927 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनॉल्ड के नेतृत्व में भारत आया था।

साइमन कमीशन का उद्देश्य था भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति ब्रिटिश सरकार की दृष्टिकोण और प्रस्तावना को जांचना, और इसके आधार पर स्वतंत्रता संग्राम के साथ ब्रिटिश सरकार के संबंधों में कोई परिवर्तन या सुधार करना। इस कमीशन के अध्यक्ष लॉर्ड चार्ल्स साइमन थे और उनके साथ अन्य ब्रिटिश और भारतीय सदस्य भी थे।

हालांकि कमीशन का उद्देश्य था भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति ब्रिटिश सरकार की दृष्टिकोण को समझना, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता कमीशन को भारतीय आत्मा की अपमान का साबब मानते थे और इसके खिलाफ उन्होंने विरोध किया। उनका मानना था कि कमीशन में भारतीय प्रतिनिधि की कमी थी और यह भारतीय लोगों के स्वायत्तता के प्रति अन्यायपूर्ण था। इसके परिणामस्वरूप, साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध और आंदोलन हुआ, जिसमें लाला लाजपत राय भी शामिल थे।

साइमन कमीशन में भारतीय सदस्य कौन थे?

  1. मोहम्मद अली जिन्ना: वे साइमन कमीशन के भारतीय सदस्य थे और बाद में पाकिस्तान के संगठक और पहले गवर्नर-जनरल बने।
  2. तेज बहादुर सप्रु: वे भी साइमन कमीशन के सदस्य थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे।
  3. सुंदरलाल नहरू: वे भी साइमन कमीशन के सदस्य थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण नेता थे।

साइमन कमीशन भारत कब आया और क्यों?

साइमन कमीशन भारत आया था 1928 में। इसका मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार के आदर्शों के साथ भारतीय संविधान के संशोधन के लिए सुझाव देना। साइमन कमीशन की स्थापना ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनल्ड द्वारा की गई थी ताकि भारतीय समाज की मांगों और आदर्शों का अध्ययन किया जा सके।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, भारतीय जनता ने साइमन कमीशन की आगमन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम माना और इसे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी आपत्ति का विषय बनाया। भारतीय नेता और जनता ने साइमन कमीशन के सदस्यों के खिलाफ उच्च स्तरीय प्रतिरोध किया और इसे ‘साइमन जाओ वापस’ की मांग के तौर पर उठाया।

साइमन कमीशन का आगमन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय जनता के आदर्शों और स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष का हिस्सा था, जो अंत में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सफलता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।

हिंदू सुधारवादी आंदोलन क्या था

हिंदू सुधारवादी आंदोलन, जिसे अक्सर ‘हिंदू महा सभा’ के रूप में जाना जाता है, भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस आंदोलन ने भारतीय समाज में बड़े परिवर्तनों का माध्यम बनाया और सामाजिक एवं धार्मिक परिपर्णता को नया दिशा देने का प्रयास किया।

LaLa Lajpat Rai : एक महान स्वतंत्रता सेनानी परिचय, शिक्षा ,उद्देश्य, मृत्यु, साइमन कमीशन का विरोध 2023
  • 1. हिंदू सुधारवाद की उत्पत्ति
  • हिंदू सुधारवादी आंदोलन की उत्पत्ति 19वीं सदी में हुई थी। यह आंदोलन सामाजिक और धार्मिक सुधार के लिए एक बड़े समुदाय के रूप में उभरा था।
  • 2. समाज में बदलाव का प्रयास
  • हिंदू सुधारवादी आंदोलन ने जाति व्यवस्था, सामाजिक बुराइयों, और अन्य सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। यह समुदाय उन्नति और समाज में न्याय के प्रति संकल्पित था।
  • 3. धार्मिक परिपर्णता का अद्यतन
  • यह आंदोलन धार्मिक परिपर्णता को भी नया दिशा देने का प्रयास किया। हिंदू धर्म के प्रति अधिक तर समझौतापूर्ण और सुधारात्मक दृष्टिकोण की ओर बढ़ाव दिया।
  • 4. आंदोलन के प्रमुख नेता
  • इस आंदोलन के प्रमुख नेता स्वामी विवेकानंद, आर्य समाज के स्वामी दयानंद सरस्वती, और महात्मा गांधी थे। उन्होंने समाज में सुधार के लिए अपना समर्थन दिया और लोगों को जागरूक किया।

चपन से ही देशभक्ति की भावना

LaLa Lajpat Rai का करियर उनके बचपन से ही देशभक्ति और समर्पण की ओर बढ़ता है। उन्होंने अपनी कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की, लेकिन उनका मन वकालत करने में नहीं लगा। उन्होंने अपनी देशभक्ति के भावनाओं को पहले मानसिक रूप से बयां किया।

शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर लाला लाजपत राय ने स्वदेशी आंदोलन को पूरे भारत में प्रबलता के साथ चलाया। अंग्रेज़ों में लाला जी के नाम का इतना खौफ था कि 1914 से 1920 तक उन्हें भारत में आने ही नहीं दिया गया। लेकिन लाजपत राय कहाँ रुकने वाले थे! उन्होंने विदेशों से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देना जारी रखा।

नेतृत्व की ओर पहला कदम

LaLa Lajpat Rai ने वकालत करते समय ही कांग्रेस की बैठकों में भी हिस्सा लेना शुरू किया था। 1885 में कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था, उस समय LaLa Lajpat Rai इस नए आंदोलन को देखने वालों में उत्साह भरा था। वहीं इसके बाद 1888 में जब अली मुहम्मद भीम जी कांग्रेस की तरफ से पंजाब के दौरे पर आए तब लाला लाजपत राय ने उन्हें अपने नगर हिसार आने का प्रस्ताव दिया और इसके लिए एक सार्वजनिक सभा का भी आयोजन किया।

कांग्रेस में नया राजनीतिक आधार

LaLa Lajpat Rai को यह भी मौका मिला जिसने उनके जीवन को एक नया राजनीतिक आधार दिया। उनकी लोकप्रियता और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान ने उन्हें कांग्रेस में आगे बढ़ने की दिशा में मदद की।

LaLa Lajpat Rai जब हिसार में वकालत करते थे, उसी समय से उन्होंने कांग्रेस की बैठकों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया था।  1885 में जब कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था उस समय लाला लाजपत राय बड़े उत्साह के साथ इस नए आंदोलन को देखना शुरु कर दिया था।

सामाजिक कार्य

LaLa Lajpat Rai ने अपने करियर के दौरान सामाजिक कार्यों में भी अपना सक्रिय योगदान दिया। उन्होंने ‘सर्वेन्ट्स ऑफ पीपल सोसाइटी’ का गठन किया, जो एक नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन था। उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने ब्रिटिश सरकार पर भी प्रभाव डाला और वे ब्रिटिशर्स के खिलाफ खड़े हो गए।

देश की आजादी का संग्राम सेनानी “LaLa Lajpat Rai

LaLa Lajpat Rai को उनके काम को देखते हुए 1920 में नेशनल कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया। उनकी चाहने वालों की संख्या काफी बढ़ गई थी और उनकी लोकप्रियता ने ही उन्हें नेशनल हीरो बना दिया। भारत की आजादी के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय ने अपने कामों से लोगों के दिल में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी और इससे लोग उन पर भरोसा करने लगे थे।

LaLa Lajpat Rai ने अमेरिका से ‘यंग इंडिया’ पत्रिका का संपादन-प्रकाशन किया और न्यूयार्क में इंडियन इनफार्मेशन ब्यूरो’ की स्थापना की। इसके अतिरिक्त दूसरी संस्था ‘इंडिया होमरुल’ भी स्थापित की। इसका नतीजा यह हुआ कि हज़ारों की संख्या में युवा उनसे प्रभावित होने लगे।

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LaLa Lajpat Rai की क्या भूमिका है?

लालाजी को स्वदेशी आंदोलन के दौरान उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और उनकी शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमें हमेशा याद रहेगा। और उन्होंने आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती के अनुयायी बनकर समाज के नेतृत्व में अपनी भूमिका निभाई। 1881 में, उन्होंने मात्र 16 साल की आयु में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और वहाँ अपने योगदान के साथ एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया।

लालाजी ने पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना में भी अपना सहयोग दिया, जिससे वह वित्तीय क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। 1885 में, उन्होंने लाहौर में दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल की स्थापना की, और वह जीवन भर एक प्रतिबद्ध शिक्षाविद् रहे।

लालाजी, तिलक, और बिपिन चंद्र पाल (जिन्हें लाल-बाल-पाल कहा जाता है) ने 1905 में लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन के बाद स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और जन आंदोलन की जोरदार वकालत की, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने 1917 में न्यूयॉर्क शहर में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका की स्थापना की, जो विदेश में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करती थी।

1920 में कोलकाता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जाने के बाद, उन्हें महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसमें वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ एक विरोध रैली के दौरान पुलिस द्वारा हमला किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनके योगदान और उपलब्धियां हमारे देश के इतिहास में हमेशा अमर रहेंगी।

LaLa Lajpat Rai के महत्वपूर्ण कार्यों में ‘द आर्य समाज’, ‘यंग इंडिया’, ‘इंग्लैंड का भारत पर ऋण’, ‘जापान का विकास’, ‘भारत की स्वतंत्रता की इच्छा’, ‘भगवत गीता का संदेश’, ‘भारत का राजनीतिक भविष्य’, ‘भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या’, ‘द डिप्रेस्ड ग्लासेस’, और यात्रा वृतांत ‘यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका’ शामिल हैं

LaLa Lajpat Rai को पंजाब केसरी क्यों कहा गया?

LaLa Lajpat Rai को “पंजाब केसरी” कहा गया क्योंकि वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय पंजाब क्षेत्र में अपने आदर्शों और नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने विभाजन के बावजूद पंजाब में विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रोत्साहित किया और लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनके साहसी और नेतृत्वकौशल ने उन्हें पंजाब के एक योगदानकारी और देश के स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में माना जाता है, और इसके कारण उन्हें “पंजाब केसरी” कहा जाता है।

लाला लाजपत राय की मृत्यु कब और क्यों हुई?

LaLa Lajpat Rai की मृत्यु 15 नवम्बर 1928 को हुई थी। उनकी मृत्यु लाहौर, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुई थी। उनकी मृत्यु उनके स्वतंत्रता संग्राम के प्रयासों के दौरान हुई, जब वे साइमन कमीशन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के हिस्से के रूप में सक्रिय थे। 1928 में, उन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में एक विरोध रैली का आयोजन किया था, और इस रैली के दौरान पुलिस द्वारा हमला किया गया था। इस हमले के चलते लाला लाजपत राय गंभीर चोटों के कारण घायल हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने स्वतंत्रता संग्राम को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना दिया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता के रूप में याद किया जाता है।

लाला लाजपत राय के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना कौन सी थी? “LaLa Lajpat Rai

LaLa Lajpat Rai के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना उनकी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के साथी नेताओं जैसे महात्मा गांधी, बाल गंगादर तिलक, और बिपिन चंद्र पाल के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रोत्साहित किया और उसमें भाग लिया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के विभागक आंदोलनों में भी भाग लिया और अपने नेतृत्व में विभाजन के समय विशेष भूमिका निभाई। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है और उन्हें ‘पंजाब केसरी’ के रूप में जाना जाता है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं में से एक थे।

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