मुस्लिम जाति में अधिक संख्या के बच्चों को पैदा करने के पीछे कई धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारण होते हैं। यह एक महत्वपूर्ण विषय है जो विभिन्न पहलुओं से जुड़कर आता है और समुदाय के विकास और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस लेख में हम देखेंगे कि मुस्लिम जाति में बच्चों की अधिक संख्या को पैदा करने के प्रमुख कारण क्या हैं:

1. धार्मिक महत्व:
मुस्लिम धर्म में बच्चों को भगवान की ओर से आवश्यक रिज़्क (रोज़ी) मिलने की उम्मीद होती है। इसलिए बच्चों की अधिक संख्या से उनके जीवन में बरकत और सफलता की उम्मीद होती है।
2. परिवार का महत्व: मुस्लिम समाज में परिवार का महत्वपूर्ण स्थान है और बड़े परिवार को पालने का तरीका समाज में महत्वपूर्ण है। अधिक बच्चों के होने से परिवार की सामाजिक स्थिति में सुधार होने की उम्मीद होती है।
3. नस्ल का विकास: मुस्लिम समुदाय में आने वाली पीढ़ी के विकास को महत्व दिया जाता है। यह मान्यता है कि आने वाले समय में मुस्लिम समुदाय की ताकत और बढ़ती है, जिसके लिए अधिक बच्चे पैदा करने की आवश्यकता होती है।
4. सामाजिक स्थिति: बड़े परिवार को समाज में उच्च स्थान मिलता है और उन्हें आदर्श माना जाता है। इसलिए बच्चों की अधिक संख्या से परिवार की सामाजिक स्थिति में सुधार होती है और समाज में उनके प्रति मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
5. शिक्षा और साक्षरता: अधिक संख्या के बच्चों को पैदा करने से शिक्षा और साक्षरता के क्षेत्र में भी सुधार होता है। मुस्लिम समुदाय में शिक्षा को महत्व दिया जाता है और अधिक बच्चों के होने से उनके शिक्षा के अवसर में वृद्धि होती है।
6. समाज के उत्थान की दिशा में योगदान: अधिक संख्या के बच्चों के पैदा होने से समाज के उत्थान की दिशा में भी योगदान होता है। ये बच्चे आने वाले समय में समाज में उत्तरदायी नागरिकों के रूप में आगे आते हैं और उनका समाज में योगदान होता है।
7. धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण: मुस्लिम समाज में बच्चे को पालने की दृष्टि से यह मान्यता है कि बच्चे भगवान की दियी हुई एक अनमोल उपहार हैं। इसलिए बच्चों की अधिक संख्या को पैदा करने के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
इश्लाम में कितनी शदिया कर सकते है ?
इस्लाम में शादियों की संख्या पर कोई स्थित नियम नहीं है, लेकिन इस्लामिक धर्मग्रंथों और आदतों के अनुसार एक मुस्लिम पुरुष को एक समय में अधिकतम चार शादियाँ करने की अनुमति दी गई है। इसका मतलब यह है कि एक पुरुष एक समय में चार पत्नियों की शादी कर सकता है। हालांकि, यह आधारित है कि पुरुष सभी पत्नियों के साथ समझदारी और इंसाफ़ से पेश आए और उनकी तरफ़ से सबकी जिम्मेदारियों का पालन करे।
धर्मिक मान्यताओं और सामाजिक संस्कृतियों के आधार पर, बहुविवाह या एकाधिक शादियाँ करने का निर्णय व्यक्ति के व्यक्तिगत और परिवारिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है

मुस्लिम धर्म की शुरवात कब हुई और कहा से ?
इस्लाम धर्म की शुरुआत पैगंबर मुहम्मद के द्वारा 7वीं सदी में हुई थी। वह मक्का शहर में पैदा हुए थे और वहाँ से ही उनकी धार्मिक उपदेश और प्रेरणा का प्रारंभ हुआ। मुहम्मद को अल्लाह की ओर से पैगंबर घोषित किया गया और उनके द्वारा प्रवचन दिए गए संदेश को कुरान में दर्ज किया गया।
610 ईसा पूर्व में, जब मुहम्मद जी ने मक्का के निकट गुफा में एक आदर्श अनुभव किया, उन्हें अल्लाह के द्वारा पैगंबर बनाया गया था। उन्होंने यहाँ तक कहा कि कुरान में उन्हें दिये गए विशेषाधिकारों के बारे में बताया गया था और उन्होंने अपने उपदेशों की प्रचार में कामयाबी प्राप्त की।
उनके द्वारा प्रचारित किए गए उपदेशों ने जल्दी ही व्यापार, सामाजिक और राजनीतिक स्फीतिका में बदलाव लाया, जिसका परिणामस्वरूप इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई। उनके अनुयायी ने इस्लाम को मक्का से मदीना भाग जाकर भी प्रसारित किया और उनके उपदेशों को अनुसरण किया।
इस प्रकार, 7वीं सदी में मुहम्मद जी के उपदेशों और कुरान के संदेश के आधार पर इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई और यह धर्म दुनियाभर में फैला।

इश्लाम धर्म
इस्लाम एक प्रमुख धर्म है जो विश्वभर में करीब 1.8 बिलियन लोगों द्वारा मान्यता प्राप्त है। यह धर्म पैगंबर मुहम्मद के द्वारा स्थापित किया गया था और इसके मूल धर्मिक ग्रंथ कुरान में उसके शिक्षाएँ और मार्गदर्शन दिए गए हैं। इस्लाम धर्म की अनूठी विशेषताएँ और महत्वपूर्ण सिद्धांतों का परिचय इस लेख में दिया जाएगा।
मूल धर्मग्रंथ: कुरान
इस्लाम का मूल धर्मग्रंथ कुरान है, जिसे अल्लाह के पैगंबर मुहम्मद को 23 साल की आयु में दिया गया था। कुरान में अल्लाह की आदिकृत शिक्षाएँ, मानवता के लिए मार्गदर्शन, नैतिकता, सामाजिक और रूहानी उन्नति के तरीके आदि के विषय में चर्चा की गई है।
इमान (विश्वास) की पिल्लर: इस्लाम में पांच महत्वपूर्ण ईमानी पिल्लर (विश्वास की स्तंभ) होते हैं, जिनमें इन्सान की आत्मा के संबंध में आदिकृत शिक्षाएँ दी जाती हैं। ये हैं: अल्लाह का विश्वास, मालाइकों का विश्वास, पैगंबरों का विश्वास, कुरान का विश्वास, और आखिरत (उस दिन के बाद का जीवन) का विश्वास।
इबादत (भक्ति) की महत्वपूर्णता: इस्लाम में इबादत (भक्ति) की महत्वपूर्णता है। इसमें अल्लाह के प्रति श्रद्धा, उसकी पूजा, रोज़ा (रोजे का पालन), जकात (धर्मिक दान), और हज (मक्का की यात्रा) शामिल हैं।
समाज में सामाजिक न्याय: इस्लाम में सामाजिक न्याय की महत्वपूर्णता है, और उसमें गरीबों, यतिमों, विधवाओं, और दरिद्रों के प्रति दया और उनकी मदद करने की उपेक्षा नहीं की जाती।
सखा (सद्भाव) और सद्गुण: इस्लाम में सखा (सद्भाव), मानवता के प्रति सद्गुण और दूसरों के साथ नेकी करने की महत्वपूर्णता है।
इश्लाम धर्म कितने देश में है ?
स्लाम धर्म विश्वभर में व्याप्त है और कई देशों में इसके अनुयायी हैं। यहाँ कुछ प्रमुख देशों के नाम दिए जा रहे हैं जिनमें इस्लाम धर्म के अनुयायी पाए जाते हैं:
- सऊदी अरब (Saudi Arabia): सऊदी अरब एक इस्लामी रियासत है और इस्लाम की मुख्य प्रवृत्ति है। मक्का और मदीना इस्लाम के पवित्र स्थल होने के कारण यहाँ पर सबसे अधिक मुस्लिम आबादी है।
- पाकिस्तान (Pakistan): पाकिस्तान भी एक मुस्लिम देश है और यहाँ पर भी इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं।
- इंडोनेशिया (Indonesia): इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है और यहाँ पर भी इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं।
- बांगलादेश (Bangladesh): बांगलादेश भी एक मुस्लिम देश है और यहाँ पर भी इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं।
- तुर्की (Turkey): तुर्की में भी मुस्लिम आबादी है और यहाँ पर इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं।
- ईरान (Iran): ईरान भी एक मुस्लिम देश है और यहाँ पर शिया मुस्लिम समुदाय के अनुयायी होते हैं।
- मिस्र (Egypt): मिस्र में भी इस्लाम धर्म के अनुयायी होते हैं और यहाँ पर काहिरा जैसे महत्वपूर्ण इतिहासिक स्थल हैं जो इस्लाम के इतिहास से जुड़े हैं।
- मरोक्को (Morocco): मरोक्को भी इस्लाम धर्म के अनुयायी होते हैं और यहाँ का कसब्लांका यात्रा स्थल है जो मुस्लिम धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, बाकी भी दुनिया में कई देश हैं जहाँ पर मुस्लिम आबादी रहती है और वहाँ पर इस्लाम धर्म के अनुयायी होते हैं।
इस्लाम धर्म की मुख्य
मोनोथेइज्म (एक ईश्वर की पूजा):
इस्लाम धर्म के अनुयायी मानते हैं कि केवल एक ही ईश्वर, अल्लाह, है और वे उसकी पूजा करते हैं।
2. कुरान: कुरान इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है, जिसमें अल्लाह के द्वारा मुहम्मद के माध्यम से दिए गए उपदेश और शिक्षाएँ हैं।
3. पैगंबर मुहम्मद: मुहम्मद इस्लाम के पैगंबर हैं, जिन्होंने अल्लाह के द्वारा प्रेरित होकर कुरान के संदेश को लोगों के पास पहुंचाया।
4. पांच पिल्लर (आम आदर्श): इस्लाम में पांच पिल्लर होते हैं – शहादत (आत्मसमर्पण), सलात (नमाज़), रोज़ा (रोजे का पालन), जकात (धर्मिक दान), और हज (मक्का की यात्रा)।
5. ईमान (विश्वास) की पिल्लर: इस्लाम में पांच ईमानी पिल्लर होते हैं – अल्लाह का विश्वास, मलाइकों का विश्वास, पैगंबरों का विश्वास, कुरान का विश्वास, और आखिरत (उस दिन के बाद का जीवन) का विश्वास।
6. जन्नत और जहन्नम: इस्लाम में विश्वास है कि आखिरत में अच्छे काम करने वालों को जन्नत (स्वर्ग) मिलेगा, जबकि बुरे काम करने वालों को जहन्नम (नरक) में जाना पड़ेगा।
7. ईमानदारी और न्याय: इस्लाम में ईमानदारी, न्यायपूर्णता, और समाज में सामाजिक न्याय का महत्व होता है।
8. सहीफ़ा (सही प्रथाएँ): मुस्लिम उम्मत को सहीफ़ा में मुहम्मद जी के शिक्षाएँ, उनके आदर्श और व्यवहार की मिसालें मिलती हैं।
9. सहलानता (संयम): इस्लाम में सहलानता, मानवता के प्रति दया, और सद्भाव की महत्वपूर्णता होती है।
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